सौभाग्यदायिनी होती है माँ गौरी की पूजा |
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'गौं
गौरीमूर्तये नमः। यह गौरी देवी का वाचक मूल मंत्र है। गौरी की सोने, चांदी,
लकड़ी अथवा पत्थर आदि की प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा करें। अथवा पांच
पिण्डीवाली मृण्मयी प्रतिमा बनाएं। चारों कोणों में अव्यक्त प्रतिमा रहे और
मध्यभाग में पांचवीं प्रतिमा स्थापित करें। आवरण देवताओं के रूप में
क्रमशः ललिता आदि शक्तियों की पूजा करनी चाहिए। पहले वृत्ताकार अष्टदल कमल
बनाकर आग्नेय आदि कोणवर्ती दलों में क्रमशः ललिता, सुभगा, गौरी और क्षोभणी
की पूजा करें। फिर पूर्वादि दलों में बामा, येष्ठा, क्रिया और ज्ञाना का
पूजन करें।
देवी
का व्यक्त रूप दो या तीन नेत्रों वाला है। वह शुद्ध रूप भगवान शंकर के साथ
पूजित होता है। वे देवी दो पीठ या दो कमलों पर स्थित होती हैं। वहां देवी
दो, चार, आठ अथवा अठारह भुजाओं से युक्त हैं। वे सिंह अथवा भेडि़ये को भी
अपना वाहन बनाती हैं। अष्टादश भुजा के दायें 9 हाथों में 9 आयुध हैं, जिनके
नाम हैं− स्त्रक्, अक्ष, सूत्र, कलिका, मुण्ड, उत्पल, पिण्डिका, बाण और
धनुष। इनमें से एक−एक महान वस्तु उनके एक−एक हाथ की शोभा बढ़ाते हैं।
वामभाग के 9 हाथों में भी प्रत्येक में एक एक करके क्रमशः 9 वस्तुएं हैं।
यथा− पुस्तक, ताम्बूल, दण्ड, अभय, कमण्डलु, गणेशजी, दर्पण, बाण और धनुष।
उनको
व्यक्त अथवा अव्यक्त मुद्रा दिखानी चाहिए। आसन समर्पण के लिए पद्म मुद्रा
कही गयी है। भगवान शिव की पूजा में लिंग मुद्रा का विधान है। यही शिवमुद्रा
है। आवाहनीमुद्रा दोनों के लिए है। इनका मण्डल या मंत्र चौकोर है। यह चार
हाथ लंबा−चौड़ा हुआ करता है। मध्यवर्ती चार कोष्ठों में त्रिदल कमल अंकित
करना चाहिए। तीनों कोणों के उर्ध्वभाग में अर्धचन्द्र रहे। उसे दो पदों को
लेकर बनाया जाए। एक से दूसरा दुगुना होना चाहिए। द्वारों का कण्ठभाग दो−दो
पदों का हो, किंतु उपकण्ठ उससे दुगुना रहना चाहिए। एक−एक दिशा में तीन−तीन
द्वार रखने चाहिए अथवा सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर उसमें पूजन करना चाहिए। अथवा
किसी चबूतरे या वेदी पर देवता की स्थापना करके पंचगव्य तथा पंचामृत आदि से
पूजन करें।
पूजन करके उत्तराभिमुख हो उन्हें लाल
रंग के फूल अर्पण करने चाहिए। घृत आदि की सौ आहुतियां देकर पूर्णाहुति
प्रदान करने वाला साधक संपूर्ण सिद्धियों का भागी होता है। फिर बलि अर्पित
करके तीन या आठ कुमारियों को भोजन कराएं। पूजा का नैवेद्य शिवभक्तों को
दें, स्वयं अपने उपयोग में न लें। इस प्रकार अनुष्ठान कर कन्या चाहने वाले
को कन्या और पुत्रहीन को पुत्र की प्राप्ति होती है। दुर्भाग्यवाली स्त्री
सौभाग्यशालिनी होती है। राजा को युद्ध में विजय तथा राज्य की प्राप्ति होती
है। आठ लाख जप करने से देवगण वश में हो जाते हैं। इष्टदेव को निवेदन किये
बिना भोजन न करें। बायें हाथ से भी अर्चना कर सकते हैं। विशेषतः अष्टमी,
चतुर्दशी तथा तृतीया को ऐसा करने की विधि है।
पितृ दोष की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष उत्तम समय होता है।
जिस भी व्यत्ति को पितृ दोष होता है उसे जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार पितृ दोष सफलता न मिलने का कारण भी होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली में स्थित ग्रह पितृ दोष के बारे में बता देते हैं। यूं तो पितृ दोष के लिए कई ग्रह जिम्मेदार होते हैं लेकिन इनमें राहु-केतु की भूमिका प्रमुऽ होती है। पितृ दोष की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष उत्तम समय होता है। पितृ दोष शांति के लिए कुछ साधारण टोटके इस प्रकार हैं-
- राहु की शांति के लिए शनिवार को तथा केतु की शांति के लिए मंगलवार का व्रत ।
- शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं।
- ब्रह्मभोज और पशुओं में कुत्ते को ऽाना ऽिलाने से केतु की शांति होती है।
- राहु दोष शांति के लिए शनिवार के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
- सोमवार को नागों के देवता भगवान शिव और विघ्र हरने वाले श्रीगणेश की आराधना करें।
- राहु-केतु के मंत्रों का जप करें।
- शनिवार को राहु की प्रसन्नता के लिए पूरे दिन नीले या काले कपड़े पहनें।
जानिए, किस तिथि पर किसका श्राद्ध करें
आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों को तृप्त करने का समय है इसलिए इसे पितृपक्ष कहते हैं। पंद्रह दिन के इस पक्ष में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती इस समस्या के समधान के लिए पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी नियत की गई हैं जिस दिन श्राद्ध करने से हमारे समस्त पितृजनों की आत्मा को शांति मिलती है। यह प्रमुऽ तिथियां इस प्रकार हैं-
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा श्राद्ध-यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि भी ज्ञात न हो तो इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इससे घर में सुऽ-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पंचमी श्राद्ध- इस तिथि पर उन परिजनों का श्राद्ध करने का महत्व है जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो। इसे कुंवारा पंचमी भी कहते हैं।
नवमी श्राद्ध- यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी कहते हैं। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
एकादशी व द्वादशी श्राद्ध- इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है जिन्होंने संन्यास लिया हो।
चतुर्दशी श्राद्ध- यह तिथि उन परिजनों के श्राद्ध के लिए उपयुत्त है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे- दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, शस्त्र के द्वारा आदि।
सर्वपितृमोक्ष अमावस्या- किसी कारण से पितृपक्ष की सभी तिथियों पर पितरों का श्राद्ध चूक जाएं या पितरों की तिथि याद न हो तब इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।
पितृदोष की शांति के छोटे व अचूक उपाय
हमारे धर्म ग्रंथों में पितृदोष को जीवन में अनेक परेशानियों का कारण माना गया है। जिसके कारण किसी भी व्यत्तिQ का जीवन बदहाल हो सकता है। यह पितृदोष गहरे मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दुःऽों का कारण भी बन सकता हैं। श्राद्ध पक्ष में यदि पितृदोष शांति के लिए उपाय किए जाएं तो इसका फल तुरंत मिलता है। आज;12 सितंबर, सोमवारद्ध से श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ हो रहा है, इसलिए पितृदोष से छुटकारे के लिए यह साधारण उपाय करें-
- प्रतिदिन स्नान कर तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें सफेद आंकड़े के फूल डालें और उदय होते सूर्य को अघ्र्य दें। अघ्र्य देते समय नीचे लिऽे मंत्र का 21 बार जप करें -
Åँ सूर्याय नमः
- इसके बाद पितरों की प्रसन्नता के लिए घर के देवालय में दीपक, अगरबत्ती जलाएं। पूजा के समय नीचे लिऽे मंत्र का 21 बार जप करें -
Åँ पितराय नमः
पितरों का )ण चुकाने का समय है श्राद्ध पक्ष
आश्विन मास के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से नाम से जाने जाते हैं। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का )ण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। इस बार श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ 12 सितंबर, सोमवार से हो रहा है तथा समापन 27 सितंबर, मंगलवार को होगा। पितृपक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पंद्रह तिथियों का एक समूह है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय;श्राद्धद्ध का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुऽ-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। इसलिए प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
श्राद्ध में कौओं को भोजन क्यों कराते हैं?
श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है। यह वह अवसर होता है जब हम ऽीर-पुड़ी आदि पकवान बनाकर उसका भोग अपने पितरों को अर्पित करते हैं जिससे तृप्त होकर पितृ हमें आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परंपराएं भी हमारे समाज में प्रचलित है। ऐसी ही परंपरा है जिसमें कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन ऽिलाया जाता है। इसका एक कारण यह है कि हिन्दू पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है। यह मान्यता है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेता युग की है जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौऐ का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने तिनके से ब्रह्मास्त्र चलाकर जयंत की आंऽ फोड़ दी थी
जब उसने अपने किए की माफी मांगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया की कि तुम्हें अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। बस तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परंपरा चल पड़ी है। दरअसल आपने गौर किया होगा कि कौआ काना यानि एक आंऽ वाला होता है। मतलब उसे एक ही आंऽ से दिऽाई देता है। यहां हिन्दू मान्यताओं में पितरों की तुलना कौऐ से की गई है। जिस प्रकार कौआ एक आंऽ से ही सभी को निष्पक्ष व समभाव से देऽता है उसी प्रकार हम यह आशा करते हैं कि हमारे पितर भी हमें समभाव से देऽते हुए हम पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रऽें। वे हमारी बुराइयों को भी उसी तरह स्वीकार करें जिस प्रकार अच्छाइयों को स्वीकारते हैं। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।
पुत्र न हो तो कौन कर सकता है श्राद्ध?
हिन्दू धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुऽ स्थान माना गया है। शास्त्रों में लिऽा है कि नरक से मुत्तिQ पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है। इसलिए यहां जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है
- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए।
- पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
- पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
- एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।
- पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।
- पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।
- पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
- पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो।
- पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
- गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।
- कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।
इस विधि से कराएं श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन?
श्राद्धपक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराने का बहुत महत्व है। क्योंकि ऐसी धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मणों के साथ वायुरूप में पितृ भी भोजन करते हैं इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुऽ समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्धपक्ष में ब्राह्मणों को किस तरह यथाविधि भोजन कराना चाहिए -
- श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशत्तिQ विद्वान ब्राह्मण या ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें।
- श्राद्ध दोपहर के समय करें।
- श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे ऽीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रऽें।
- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें।
- इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं, किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को ऽिला सकते हैं।
- इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशत्तिQ कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं।
- ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
मुश्किलों से सामना करने का साहस देता है
कभी-कभी जिंदगी ऐसी मुश्किलों से घिर जाती है कि समझ नहीं आता कि इन परेशानियों से कैसा निपटा जाए? मुसीबतों से निपटने के लिए तो हर व्यत्ति संघर्ष करता है लेकिन कई बार इंसान ऐसी परिस्थितियों में अपने आप को शत्तिहीन महसूस करने लगता है।
यदि आपके साथ भी यही समस्या है। आप संघर्ष करते-करते थक चुके हैं। लगने लगा है कि आपकी किस्मत आपका साथ नहीं दे रही है, ऐसे में सिर्फ मंत्र शत्ति ही ऐसी शत्ति है जो आपको स्थिति से लडने की ताकत दे सकती है। ऐसे समय में नीचे मंत्र का जप करने से आपको मुश्किलों से लडने की शत्ति मिलेगी।
सृष्टिस्थितिविनाशानां शत्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तुते।
- प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ वस्त्र पहनकर मां दुर्गा का पूजन करें। उन्हें लाल फूल चढ़ाएं।
- मां दुर्गा के सामने कुश का आसन लगाकर लाल चंदन अथवा कमल गट्ट की माला से इस मंत्र का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
- एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र जल्दी ही सिद्ध हो जाता है।
मोटापे से परेशान हैं तो यह उपाय करें
वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में मोटापा एक गंभीर बीमारी के रूप में उभरकर सामने आया है। इसका सबसे बड़ा कारण अनियमित दिनचर्या व असंयमित ऽान-पान है। मोटापा वाकई में एक रोग हैं। अगर आप भी मोटापे के कारण परेशान हैं तो यह उपाय करें।
अपने हाथ के चार अंगुल नाप का काला धागा लेकर अनामिका अंगुली में लपेट लें और एक शुद्ध रांगे की अंगूठी लेकर उसके Uपर पहन लें। अंगूठी इस प्रकार पहनें की धागा किसी को दिkhaई न दें। इस उपाय से मोटापा धीरे-धीरे अपने आप कम हो जाएगा और आप पहले की तरह स्लिम हो जाएंगे। यह टोटका रविवार के दिन करें।
रोगों से छुटकारा पाना है तो करें सूर्य नमस्कार
क्रोमोथैरपी रोम की एक प्रचीन चिकित्सा पद्धति है। क्रोमो का अर्थ होता है रंग और पैथी का अर्थ है- चिकित्सा पद्धति यानि रंगों पर आधारित चिकित्सा जिसमें बीमारियों का पता लगाकर उससे सम्बन्धित रंगों का प्रकाश दिया जाता है। उर्जा के प्रमुख संचालक सूर्य के प्रकाश में सात प्रकार के रंग मौजूद होते है।
1-लाल, 2- पीला, 3-हरा, 4-नीला, 5-आसमानी, 6-बैंगनी, 7-नारंगी। इस पद्धति में सूर्य के प्रकाश में सात प्रकार के रंगों को शरीर के विभिन्न अवयव ग्रहण करते है। जिससे शरीर में रंगों का सन्तुलन बना रहता है, और यह सन्तुलन बिगड़ते ही शरीर रोगों की चपेट में आ जाता है। इस प्रचीन चिकित्सा पद्धति में बीमारियों के लक्षणों का पता लगाकर उससे सम्बन्धित रंगों का प्रकाश देकर शरीर के विकारों को दूर किया जाता है।
क्रोमोथैरपी चिकित्सा की विधि
प्रकृति के रंगों का प्रमुख स्रोत है, सूर्य का प्रकाश है। घर में एक कमरे की खिड़की का चुनाव इस प्रकार करें कि जिसमें प्रातःकाल सूर्य की किरणें सीधी अन्दर आती हों। उस खिड़की में बीमारी के अनुसार उस रंग का शीशा लगाया जाता है। रोगी के शरीर पर कम से कम 30 गुणे 36 वर्ग सेमी0 के रंगीन कांच के माध्यम से सूर्य का प्रकाश पड़ना चाहिए। यह प्रकाश 7 दिनों तक प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट तक लेने से रोगी की व्याधियां दूर हो जाती है और वह स्वस्थ्य हो जाता है।
दूसरी विधि
इसमें बीमारी के अनुसार उससे सम्बन्धित रंग का जल सेवन करना पड़ता है। एक साफ कांच की बोतल में पानी भरकर उसके चारों ओर विशेष रंग का कागज लपेट दिया जाता है, तत्पश्चात आठ-आठ घन्टे इस बोतल को धूप में रखकर रोगी को 7 दिनों तक एक-एक कप सुबह व शाम जल पिलाया जाता है।
सूर्य की किरणों में मौजूद सात रंगों का प्रयोग शरीर में व्याप्त विभिन्न रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है-
लाल- लाल रंग शक्ति, गर्मी और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है। यह रक्त सम्बन्धी बीमारियों को दूर करने में सक्षम होता है। जैसे- एनीमिया, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, पीलिया, पाचन सम्बन्धी रोग व आर्थराइटिस आदि बीमारियों में इस रंग का उपचार अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।
पीला- यह रंग क्रोध, भय व अशान्ति व चिड़चिड़ापन को दूर करने में अत्यन्त उपयोगी है। सीने की जलन, कब्ज, आंतों के रोग, बवसीर, किडनी, लीवर, दिमाग और मासिक धर्म से सम्बन्धित दिक्कतों को दूर करने में पीला रंग रामबाण का काम करता है।
हरा- यह रंग शरीर में स्फूर्ति प्रदान करके उर्जा का संचरण करता है। शारीरिक और बौद्धिक मजबूती के लिए हरा रंग उपयोगी सिद्ध होता है। इस रंग के द्वारा अनेक बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। जैसे- नाड़ी तन्त्र, दिल की बीमारियां, सर्दी जुकाम, पेट में अल्सर, मानसिक रोग आदि रोगों को दूर करने में हरा रंग सहयोगी सिद्ध होता है।
नीला- यह रंग त्वचा के लिए विशेषकर लाभदायक साबित होता है। शरीर के बाहरी व आन्तरिक भागों में किसी भी प्रकार की सूजन को कम करने में नीला रंग सक्षम होता है। त्वचा में किसी भी प्रकार की जलन, इन्फेक्शन, पिम्पल, त्वचा का फटना, फोड़े व फुन्सी, झांई, आदि को ठीक करने में नीले रंग का इस्तेमाल किया जाता है।
आसमानी- आंखों से सम्बन्धित बीमारियों के लिए आसामनी रंग काफी उपयोगी है। इस रंग से मन का डर, अतिभावुकता, बहरापन, मोतियाबिन्द, रतौंधी आदि प्रकार की समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
बैंगनी- यह रंग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में लाभदायक रहता है एंव एम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। महिलाओं से सम्बन्धित स्त्री रोगों के विकारों को दूर करने में बैंगनी रंग का प्रकाश काफी लाभदायक रहता है।
नारंगी- यह रंग शरीर को शक्तिशाली व स्वस्थ्य बनाने में महती भूमिका निभाता है। कब्ज के रोगियों के लिए यह अत्यन्त फायदेमन्द रहता है। विशेषकर इस रंग का प्रयोग श्वसन तन्त्र से सम्बन्धित बीमारियों को दूर करने में किया जाता है। जैसे- आस्थमा, ब्रांकाइटिस, खांसी, साइनस एंव गले के रोग आदि।
क्रोमोथैरपी चिकित्सा पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। इस चिकित्सा में किसी डाक्टर की आवश्यकता नहीं होती है। आप इसे स्वयं करके लाभ उठा सकते हैं।
नौ ग्रहों पर बना विश्व का पहला मंदिर |
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मध्यप्रदेश
राज्य के इंदौर जिले के एरोड्रम क्षेत्र में बनाया गया दिगंबर जैन नवग्रह
जिनालय विश्व का पहला अनूठा मंदिर है। इस मंदिर में नौ ग्रहों के आधार पर
24 तीर्थंकरों की खडगासन प्रतिमाएँ विराजित हैं। आचार्य दर्शनसागरजी महाराज
के सानिध्य में सन् 1998 में इस मंदिर को बनाया गया था। यह एक मंदिर
चमत्कारिक है। यहाँ श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होती है। मंदिर क्षेत्र
में प्याऊ, धर्मशाला, संत निवास, स्वाध्याय भवन, प्रवचन हॉल आदि का निर्माण
किया गया है।
इस मंदिर से जुड़ा एक रोचक तथ्य और है। वर्षांत में 31
दिसंबर की रात को यहाँ भक्तामर पाठ का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही रात
12 बजे दूध के कढ़ाव लगाए जाते हैं तब करीब एक घंटे तक यहाँ लगे 9 छत्र
नृत्य करते प्रतीत होते हैं। इस दृश्य को हजारों श्रद्धालुओं ने देखा है।
नव वर्ष पर यह अनूठा अनुभूत दृश्य दिखाई दिया।
इसी तरह गोराकुंड
चौराहा स्थित लश्करी मंदिर के साथ मारवाड़ी मंदिर और सुभाष चौक पर माणक चौक
मंदिर दिगंबर जैन समाज के प्राचीन मंदिर हैं। इसी तरह लाल मंदिर और बड़ा
सराफा में श्वेतांबर जैन समाज के प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में भी
महावीर जयंती पर कई आयोजन किए जाते हैं।
चमत्कारी उलटे हनुमान |
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कवन सो काज कठिन जगमाहीं, जो नहिं होइ, तात तुम पाहीं।
धर्मयात्रा में इस बार हम आपको ले चलते हैं भगवान
हनुमान के एक विशेष मंदिर तक जो साँवेर नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर
की खासियत यह है कि इसमें हनुमानजी की उलटी मूर्ति स्थापित है। और इसी वजह
से यह मंदिर उलटे हनुमान के नाम से मालवा क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक धार्मिक नगरी उज्जैन से मात्र 30 किमी की
दूरी पर स्थित इस मंदिर को यहाँ के निवासी रामायणकालीन बताते हैं। मंदिर
में हनुमानजी की उलटे चेहरे वाली सिंदूर लगी मूर्ति है।
यहाँ के लोग एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहते हैं
कि जब अहिरावण भगवान श्रीराम व लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया था,
तब हनुमान ने पाताल लोक जाकर अहिरावण का वध कर श्रीराम और लक्ष्मण के
प्राणों की रक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहाँ से
हनुमानजी ने पाताल लोक जाने हेतु पृथ्वी में प्रवेश किया था।
कहते हैं भक्ति में तर्क के बजाय आस्था का महत्व अधिक
होता है। यहाँ प्रतिष्ठित मूर्ति अत्यंत चमत्कारी मानी जाती है। यहाँ कई
संतों की समाधियाँ हैं। सन् 1200 तक का इतिहास यहाँ मिलता है।
उलटे हनुमान मंदिर परिसर में पीपल, नीम, पारिजात,
तुलसी, बरगद के पेड़ हैं। यहाँ वर्षों पुराने दो पारिजात के वृक्ष हैं।
पुराणों के अनुसार पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का भी वास रहता है। मंदिर के
आसपास के वृक्षों पर तोतों के कई झुंड हैं। इस बारे में एक दंतकथा भी
प्रचलित है। तोता ब्राह्मण का अवतार माना जाता है। हनुमानजी ने भी
तुलसीदासजी के लिए तोते का रूप धारण कर उन्हें भी श्रीराम के दर्शन कराए
थे।
साँवेर के उलटे हनुमान मंदिर में श्रीराम, सीता,
लक्ष्मणजी, शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। मंगलवार को हनुमानजी को चौला भी
चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि तीन मंगलवार, पाँच मंगलवार यहाँ दर्शन
करने से जीवन में आई कठिन से कठिन विपदा दूर हो जाती है। यही आस्था
श्रद्धालुओं को यहाँ तक खींच कर ले आती है।
कैसे पहुँचेंः-
हवाई मार्गः- निकटतम एयरपोर्ट इंदौर 30 किमी दूरी पर स्थित है।
रेल मार्गः- यहाँ पहुँचने के लिए सबमें निकटतम इंदौर का रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्गः- उज्जैन (30 किमी), इंदौर (30 किमी) से यहाँ आने-जाने के लिए बस तथा टैक्सी उपलब्ध है।
इंदौर, साँवेर, उलटे हनुमान, बजरंग बलि, हिंदू देवता
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माला के 108 मनकों का अर्थ |
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श्रद्धा,
भक्ति और समर्पण की प्रतीक माला के 108 मनके अपने में गूढ़ अर्थ संजोए हैं।
भारतीय मुनियों ने एक वर्ष में 27 नक्षत्र बताए हैं। प्रत्येक नक्षत्र के
चार चरण हैं, इस प्रकार 108 चरण होते हैं। इसीलिए ज्योतिर्विज्ञान में यह
संख्या शुभ मानी जाती है। जैन मत में भी 108 मनकों की माला को पवित्र माना
जाता है। मन, वचन और कर्म से जो हिंसा आदि पाप होते हैं, वे 36 प्रकार के
होते हैं। इन्हें स्वयं करने, दूसरों से कराने तथा करते हुए को सराहने से
यह संख्या 36 का तीन गुना यानी 108 हो जाती है। इन 108 पापों (बुरे कामों)
से मुक्ति के लिए इस माला का जप किया जाता है। बौद्ध मत में भी यह संख्या
शुभ मानी जाती है। बुद्ध के जन्म के समय 108 ज्योतिषियों के उपस्थित रहने
की बात कही जाती है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले देश जापान में श्राद्ध
के अवसर पर 108 दीपक जलाने की प्रथा है। वस्तुतः माला का उपयोग मन की
एकाग्रता के लिए किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि जप के माध्यम से
मन के मतवाले घोड़े को नियंत्रण में रखा जा सकता है, जिससे अपार भौतिक व
आध्यात्मिक उपलब्धियां प्राप्त हो जाती हैं। माना जाता है कि माला फेरते
समय अंगूठे व अंगुलियों के मध्य घर्षण से एक प्रकार की विद्युत उत्पन्न
होती है, जो धमनियों द्वारा सीधे हृदय चक्र को प्रभावित करती है। इससे मन
स्थिर होता है। यह तभी प्रभावी होता है, जब जप करने वाले के मन का मैल धुला
हुआ हो।
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