प्रेम विवाह करने वाले लडके व लडकियों को एक-दुसरे को समझने के अधिक अवसर प्राप्त होते है. इसके फलस्वरुप दोनों एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव व पसन्द-नापसन्द को अधिक कुशलता से समझ पाते है. प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू भावनाओ व स्नेह की प्रगाढ डोर से बंधे होते है. ऎसे में जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी दोनों का साथ बना रहता है. पर कभी-कभी प्रेम विवाह करने वाले वर-वधू के विवाह के बाद की स्थिति इसके विपरीत होती है. इस स्थिति में दोनों का प्रेम विवाह करने का निर्णय शीघ्रता व बिना सोचे समझे हुए प्रतीत होता है. आईये देखे कि कुण्डली के कौन से योग प्रेम विवाह की संभावनाएं बनाते है.
1. राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं (Yogas of Rahu increase the chances of a love marriage)
2. प्रेम विवाह के अन्य योग (Other astrological yogas for love marriage)
कुण्डली मिलान से पहले (Before kundle Milan)
विवाह से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर और कन्या की आयु में अधिक अंतर नहीं हो.आर्थिक स्थिति के कारण भी पारिवारिक जीवन में कलह उत्पन्न होता है अत: आर्थिक मामलों की अच्छी तरह जांच पड़ताल करने के बाद ही विवाह की बात आगे चलाना चाहिए.संभव हो तो वर और वधू की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की भी जांच करवा लेनी चाहिए इससे विवाह के पश्चात आने वाली बहुत सी उलझनें सुलझ जाती हैं.
कुण्डली और गुण मिलान (Kundli and Guna milan)
उपरोक्त बातों की जांच पड़ताल करने के बाद वर और वधू की कुण्डली मिलान (Birth Chart Matching) कराना चाहिए.कुण्डली मिलान (marriage Match Making) करते समय जन्म कुण्डली की सत्यता पर भी ध्यान देना चाहिए.मेलापक में 36 गुणों में से कम से कम 18 गुण मिलना शुभ होता है.मेलपाक में 18 गुण होने पर इस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गण मैत्री और नाड़ी दोष नहीं हो.वर वधू की राशि का मिलान भी करना चाहिए.राशि मिलान के अनुसार वर और कन्या क्रमश: अग्नि एवं वायु तत्व तथा भूमि एवं जल तत्व के होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बना रहता है.
मेलापक में राशि विचार (Melapak Rashi Vichar)
वर और कन्या की राशियों के बीच तालमेल का वैवाहिक जीवन पर काफी असर होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है.ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो.
वर और कन्या की राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है.अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
कुण्डली में दोष विचार (Kundli Dosha Vichar)
विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग (Baidhavya Yoga), व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग (Daridra Yoga) हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग (Vish Kanya Yoga) होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.हलांकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है.
1. राहु के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं (Yogas of Rahu increase the chances of a love marriage)
- 1) जब राहु लग्न में हों परन्तु सप्तम भाव पर गुरु की दृ्ष्टि हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावनाए बनती है. राहु का संबन्ध विवाह भाव से होने पर व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने का सोचता है. राहु को स्वभाव से संस्कृ्ति व लीक से हटकर कार्य करने की प्रवृ्ति का माना जाता है.
- 2.) जब जन्म कुण्डली में मंगल का शनि अथवा राहु से संबन्ध या युति हो रही हों तब भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है. कुण्डली के सभी ग्रहों में इन तीन ग्रहों को सबसे अधिक अशुभ व पापी ग्रह माना गया है. इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब विवाह भाव, भावेश से संबन्ध बनाता है तो व्यक्ति के अपने परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करने की संभावनाएं बनती है.
- 3.) जिस व्यक्ति की कुण्डली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहु की दृ्ष्टि हो, उसके प्रेम विवाह करने की सम्भावनाएं बनती है. (Aspect of Rahu on the seventh lord, saturn or venus increases chances of love marriage)
- 4) जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहु या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते है.
2. प्रेम विवाह के अन्य योग (Other astrological yogas for love marriage)
- 1) जब किसी व्यक्ति कि कुण्ड्ली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथ, पंचम भाव में ही स्थित हों तब अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है.
- 2) इसके अलावा जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द लग्न से पंचम भाव में स्थित होंने पर प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है. (Venus in fifth or ninth house from ascendant or fifth house from Moon increases love marriage chances)
- 3) प्रेम विवाह के योगों में जब पंचम भाव में मंगल हों तथा पंचमेश व एकादशेश का राशि परिवतन अथवा दोनों कुण्डली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह होने के योग बनते है.
- 4) अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती है.
- 5) जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हों तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है. (When Saturn or ketu are in the seventh house the chances for love marriage increase)
- 6) कुण्डली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे हों, अथवा एक-दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
- 7) जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक -दूसरे से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है.
- 8) जब सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हों तब विवाह का भाव बली होता है. तथा व्यक्ति प्रेम विवाह कर सकता है.
- 9) पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युति, स्थिति अथवा दृ्ष्टि संबन्ध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते है. (Combinatin of fifth and the seventh house and mutual aspect or sign exchange causes love marriage)
- 10) जब सप्तमेश की दृ्ष्टि, युति, स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हों तो, प्रेम विवाह होता है.
- 11) द्वादश भाव में लग्नेश, सप्तमेश कि युति हों व भाग्येश इन से दृ्ष्टि संबन्ध बना रहा हो, तो प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती है. (Conjunction of lagna lord seventh house or aspect increases chances of love marriage)
- 12) जब जन्म कुण्डली में शनि किसी अशुभ भाव का स्वामी होकर वह मंगल, सप्तम भाव व सप्तमेश से संबन्ध बनाते है. तो प्रेम विवाह हो सकता है.
विवाह समय निर्धारण
विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है. इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है. जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह होकर इन ग्रहों से दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है. वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है.
इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है (Higher influence of the auspicious planets is good for marriage). तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है. क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है. विवाह की अवधि में देरी होती ही है.
जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र (Venus is the Karak planet for marriage) व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-
1. सप्तमेश की दशा- अन्तर्दशा में विवाह- (Marriage in the Mahadasha-Antardasha of Seventh Lord)
जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है. इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते है.
2. सप्तमेश में नवमेश की दशा- अन्तर्द्शा में विवाह (Marriage in the Mahadasha-Antardasha of Ninth Lord in Seventh Lord)
ग्रह दशा का संबन्ध जब सप्तमेश व नवमेश का आ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
3. सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of the planets in the seventh house)
सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है. इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है:-
जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है.
5. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह (Marriage in the dasha of friendly planets of the seventh lord)
जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है.
6. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of planets aspected by the seventh house and lord)
सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है. सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है. इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है
7. लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the ascendant lord or the seventh lord)
लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
8. शुक्र की शुभ स्थिति (Auspicious position of Venus in Marriage astrology)
किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है
9. शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of planets in conjunction with Venus)
शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
10. शुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the Nakshatra lord of Venus)
जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है (Higher influence of the auspicious planets is good for marriage). तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है. क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है. विवाह की अवधि में देरी होती ही है.
जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र (Venus is the Karak planet for marriage) व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-
1. सप्तमेश की दशा- अन्तर्दशा में विवाह- (Marriage in the Mahadasha-Antardasha of Seventh Lord)
जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है. इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते है.
2. सप्तमेश में नवमेश की दशा- अन्तर्द्शा में विवाह (Marriage in the Mahadasha-Antardasha of Ninth Lord in Seventh Lord)
ग्रह दशा का संबन्ध जब सप्तमेश व नवमेश का आ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
3. सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of the planets in the seventh house)
सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है. इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है:-
- क) सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा की आरम्भ की अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनाती है. या
- ख) शुक्र, सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित होने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाएं बनाता है.
- ग) इसके अतिरिक्त जब अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों या स्वयं सप्तमेश हों तो इस ग्रह की दशा के अन्तिम भाग में विवाह संभावित होता है.
जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है.
5. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह (Marriage in the dasha of friendly planets of the seventh lord)
जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है.
6. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of planets aspected by the seventh house and lord)
सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है. सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है. इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है
7. लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the ascendant lord or the seventh lord)
लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
8. शुक्र की शुभ स्थिति (Auspicious position of Venus in Marriage astrology)
किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है
9. शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह (Marriage in the Dasha of planets in conjunction with Venus)
शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
10. शुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह (Marriage in the dasha of the Nakshatra lord of Venus)
जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनती है.
विवाह के लिए प्रश्न कुण्डली में ग्रह स्थिति
विवाह के लिए प्रश्न कुण्डली में सप्तम, द्वितीय और एकादश भाव को देखा जाता है.विवाह के कारक ग्रह के रूप में पुरूष की कुण्डली में शुक्र और चन्द्रमा (Venus are Moon are the karakas for marriage for males) को देखा जाता है जबकि स्त्री की कुण्डली में मंगल और सूर्य को देखा जाता है (Mars and Sun are marriage karakas for females) गुरू भी स्त्री की कुण्डली में विवाह के विषय में महत्वपूर्ण होता है.सप्तम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो और एकादश एवं द्वितीय भाव भी शुभ प्रभाव में हो तो विवाह लाभप्रद और सुखमय होने का संकेत माना जाता है.अगर नवम भाव का स्वामी सप्तम भाव में शुभ प्रभाव में होता है तो विवाह के पश्चात व्यक्ति को अधिक कामयाबी मिलती है.नवम भाव का स्वामी चन्द्रमा अगर सप्तम में गुरू से युति सम्बन्ध बनता है चन्द को देखता है तो विवाह के पश्चात जीवन अधिक सुखमय हो सकता है ऐसी संभावना व्यक्त की जाती है.
प्रश्न कुण्डली में लाभप्रद वैवाहिक सम्बन्ध के लिए ग्रह स्थिति (Astrological Combinations for a fruitful married life)
जब प्रश्नकर्ता प्रश्न कुण्डली से यह पूछता है कि वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होगा अथवा नहीं.इस प्रश्न के उत्तर में प्रश्न कुण्डली में अगर चन्द्रमा तृतीय, पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में हो और गुरू चन्द्र को देखता है तो वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होने की पूरी संभावना व्यक्त की जाती है (Marriage is fruitful if the Moon is in 3rd, 5th, 10th or 11th houses and aspecting jupiter).लग्न स्थान में चन्द्रमा अथवा शुक्र तुला, वृष या कर्क राशि हो बैठा हो और गुरू गुरू अपनी शुभ दृष्टि से लग्न को देखता हो तो वैवाहिक सम्बन्ध फायदेमंद हो सकता है.अष्टम भाव का स्वामी प्रश्न कुण्डली में अगर पीड़ित नहीं हो तो आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार में विवाह होता है और सम्बन्ध से लाभ मिलता है.अष्टम भाव में अगर गुरू, शुक्र या राहु भी हो तो इसे और भी शुभ संकेत माना जाता है.
प्रश्न कुण्डली में लाभप्रद वैवाहिक सम्बन्ध का उदाहरण (Example of astrological combinations for fruitful marriage)
अतुल का अपना कारोबार है.इनकी शादी की बात चल रही है.इनके मन में इस बात को लेकर आशंका है कि जो वैवाहिक सम्बन्ध होने जा रहा है क्या वह इनके लिए लाभप्रद होगा.अपनी जिज्ञासा लेकर अतुल 23 मई 2009 को 1 बजकर 5 सेकेण्ड पर प्रश्न कुण्डली से सवाल पूछते हैं कि, क्या यह वैवाहिक सम्बन्ध फायदेमंद होगा.लग्न निर्धारण हेतु इन्होंने कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार दिये गये 1से 249 अंक में अंक 15 का चयन किया और वैदिक पद्धति के अनुसार 1 से 108 में 16 अंक का चयन किया.इस प्रकार प्रश्न की कुण्डली तैयार हुई.इस कुण्डली में सिह लग्न उपस्थित है जिसका स्वामी सूर्य है.राशि है कन्या जिसका स्वामी बुध है.नक्षत्र है भरणी जिसका स्वामी है शुक्र.कुण्डली का विश्लेषण करने से मालूम होता है कि अतुल के लिए यह वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होने की संभावना कम है क्योकि लग्न में पाप ग्रह शनि बैठा है (the malefic planet saturn is in the ascendant).दूसरी स्थिति यह भी है कि दशमेश शनि लग्न में शत्रु ग्रह की राशि में है अत: अनुकूल परिणाम की संभावना कम दिखाई देती है.प्रश्न की कुण्डली में अष्टमेश गुरू और द्वितीयेश बुध दोनों एक दूसरे से 90 डिग्री पर हैं जो इस विवाह सम्बन्ध से लाभ की संभावना से इंकार कर रहे हैं
प्रश्न कुण्डली में लाभप्रद वैवाहिक सम्बन्ध के लिए ग्रह स्थिति (Astrological Combinations for a fruitful married life)
जब प्रश्नकर्ता प्रश्न कुण्डली से यह पूछता है कि वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होगा अथवा नहीं.इस प्रश्न के उत्तर में प्रश्न कुण्डली में अगर चन्द्रमा तृतीय, पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में हो और गुरू चन्द्र को देखता है तो वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होने की पूरी संभावना व्यक्त की जाती है (Marriage is fruitful if the Moon is in 3rd, 5th, 10th or 11th houses and aspecting jupiter).लग्न स्थान में चन्द्रमा अथवा शुक्र तुला, वृष या कर्क राशि हो बैठा हो और गुरू गुरू अपनी शुभ दृष्टि से लग्न को देखता हो तो वैवाहिक सम्बन्ध फायदेमंद हो सकता है.अष्टम भाव का स्वामी प्रश्न कुण्डली में अगर पीड़ित नहीं हो तो आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार में विवाह होता है और सम्बन्ध से लाभ मिलता है.अष्टम भाव में अगर गुरू, शुक्र या राहु भी हो तो इसे और भी शुभ संकेत माना जाता है.
प्रश्न कुण्डली में लाभप्रद वैवाहिक सम्बन्ध का उदाहरण (Example of astrological combinations for fruitful marriage)
अतुल का अपना कारोबार है.इनकी शादी की बात चल रही है.इनके मन में इस बात को लेकर आशंका है कि जो वैवाहिक सम्बन्ध होने जा रहा है क्या वह इनके लिए लाभप्रद होगा.अपनी जिज्ञासा लेकर अतुल 23 मई 2009 को 1 बजकर 5 सेकेण्ड पर प्रश्न कुण्डली से सवाल पूछते हैं कि, क्या यह वैवाहिक सम्बन्ध फायदेमंद होगा.लग्न निर्धारण हेतु इन्होंने कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार दिये गये 1से 249 अंक में अंक 15 का चयन किया और वैदिक पद्धति के अनुसार 1 से 108 में 16 अंक का चयन किया.इस प्रकार प्रश्न की कुण्डली तैयार हुई.इस कुण्डली में सिह लग्न उपस्थित है जिसका स्वामी सूर्य है.राशि है कन्या जिसका स्वामी बुध है.नक्षत्र है भरणी जिसका स्वामी है शुक्र.कुण्डली का विश्लेषण करने से मालूम होता है कि अतुल के लिए यह वैवाहिक सम्बन्ध लाभप्रद होने की संभावना कम है क्योकि लग्न में पाप ग्रह शनि बैठा है (the malefic planet saturn is in the ascendant).दूसरी स्थिति यह भी है कि दशमेश शनि लग्न में शत्रु ग्रह की राशि में है अत: अनुकूल परिणाम की संभावना कम दिखाई देती है.प्रश्न की कुण्डली में अष्टमेश गुरू और द्वितीयेश बुध दोनों एक दूसरे से 90 डिग्री पर हैं जो इस विवाह सम्बन्ध से लाभ की संभावना से इंकार कर रहे हैं
सुखी वैवाहिक जीवन
कुण्डली मिलान से पहले (Before kundle Milan)
विवाह से पूर्व इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वर और कन्या की आयु में अधिक अंतर नहीं हो.आर्थिक स्थिति के कारण भी पारिवारिक जीवन में कलह उत्पन्न होता है अत: आर्थिक मामलों की अच्छी तरह जांच पड़ताल करने के बाद ही विवाह की बात आगे चलाना चाहिए.संभव हो तो वर और वधू की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की भी जांच करवा लेनी चाहिए इससे विवाह के पश्चात आने वाली बहुत सी उलझनें सुलझ जाती हैं.
कुण्डली और गुण मिलान (Kundli and Guna milan)
उपरोक्त बातों की जांच पड़ताल करने के बाद वर और वधू की कुण्डली मिलान (Birth Chart Matching) कराना चाहिए.कुण्डली मिलान (marriage Match Making) करते समय जन्म कुण्डली की सत्यता पर भी ध्यान देना चाहिए.मेलापक में 36 गुणों में से कम से कम 18 गुण मिलना शुभ होता है.मेलपाक में 18 गुण होने पर इस इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गण मैत्री और नाड़ी दोष नहीं हो.वर वधू की राशि का मिलान भी करना चाहिए.राशि मिलान के अनुसार वर और कन्या क्रमश: अग्नि एवं वायु तत्व तथा भूमि एवं जल तत्व के होने पर वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बना रहता है.
मेलापक में राशि विचार (Melapak Rashi Vichar)
वर और कन्या की राशियों के बीच तालमेल का वैवाहिक जीवन पर काफी असर होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर वर और कन्या की राशि समान हो तो उनके बीच परस्पर मधुर सम्बन्ध रहता है.दोनों की राशियां एक दूसरे से चतुर्थ और दशम होने पर वर वधू का जीवन सुखमय होता है.तृतीय और एकादश राशि होने पर गृहस्थी में धन की कमी नहीं रहती है.ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर और कन्या की कुण्डली में षष्टम भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव में समान राशि नहीं हो.
वर और कन्या की राशि अथवा लग्न समान होने पर गृहस्थी सुखमय रहती है परंतु गौर करने की बात यह है कि राशि अगर समान हो तो नक्षत्र भेद होना चाहिए अगर नक्षत्र भी समान हो तो चरण भेद आवश्यक है.अगर ऐसा नही है तो राशि लग्न समान होने पर भी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आती है.
कुण्डली में दोष विचार (Kundli Dosha Vichar)
विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय दोषों का भी विचार करना चाहिए.कन्या की कुण्डली में वैधव्य योग (Baidhavya Yoga), व्यभिचार योग, नि:संतान योग, मृत्यु योग एवं दारिद्र योग (Daridra Yoga) हो तो ज्योतिष की दृष्टि से सुखी वैवाहिक जीवन के यह शुभ नहीं होता है.इसी प्रकार वर की कुण्डली में अल्पायु योग, नपुंसक योग, व्यभिचार योग, पागलपन योग एवं पत्नी नाश योग रहने पर गृहस्थ जीवन में सुख का अभाव होता है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कन्या की कुण्डली में विष कन्या योग (Vish Kanya Yoga) होने पर जीवन में सुख का अभाव रहता है.पति पत्नी के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती है.हलांकि कई स्थितियों में कुण्डली में यह दोष प्रभावशाली नहीं होता है अत: जन्म कुण्डली के अलावा नवमांश और चन्द्र कुण्डली से भी इसका विचार करके विवाह किया जा सकता है.
वैवाहिक जीवन में बाधा डालने वाले ग्रह योग
जब एक स्त्री और पुरूष वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हें तब उनके कुछ सपने और ख्वाब होते हैं. कुण्डली में मौजूद ग्रह स्थिति कभी कभी ऐसी चाल चल जाते हैं कि पारिवारिक जीवन की सुख शांति खो जाती है.
पति पत्नी समझ भी नही पाते हैं कि उनके बीच कलह का कारण क्या है और ख्वाब टूट कर बिखरने लगते हैं.
वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुख पर गहों का काफी प्रभाव होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है. इसके अलावे भी ग्रहों के कुछ ऐसे योग हैं जो गृहस्थ जीवन में बाधा डालते हैं.
ज्योतिषशास्त्र कहता है जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं. जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले. इसी प्रकार सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.
जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है. ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कमज़ोर ग्रह स्थिति होने पर शुक्र की महादशा के दौरान पति पत्नी के बीच सामंजस्य का अभाव रहता है. केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है. इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है. शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.
सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है अत: जिनकी कुण्डली में इस तरह का योग है उन्हें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और समर्पण की भावना रखनी चाहिए। सप्तम भाव अथवा लग्न स्थान में एक से अधिक शुभ ग्रह हों या फिर इन भावों पर दो से अधिक शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह जीवनसाथी को पीड़ा देता है जिसके कारण वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है.
सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है. चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है. कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.
वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुख पर गहों का काफी प्रभाव होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है. इसके अलावे भी ग्रहों के कुछ ऐसे योग हैं जो गृहस्थ जीवन में बाधा डालते हैं.
ज्योतिषशास्त्र कहता है जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं. जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले. इसी प्रकार सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.
जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है. ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कमज़ोर ग्रह स्थिति होने पर शुक्र की महादशा के दौरान पति पत्नी के बीच सामंजस्य का अभाव रहता है. केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है. इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है. शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.
सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है अत: जिनकी कुण्डली में इस तरह का योग है उन्हें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और समर्पण की भावना रखनी चाहिए। सप्तम भाव अथवा लग्न स्थान में एक से अधिक शुभ ग्रह हों या फिर इन भावों पर दो से अधिक शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह जीवनसाथी को पीड़ा देता है जिसके कारण वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है.
सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है. चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है. कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.